पटाखे फोड़ना अधिकारों के तहत संरक्षित नहीं, ऐसा करके कोई कैसे खुश हो सकता है; पूर्व जस्टिस ओका
पूर्व जस्टिस ने कहा कि सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि किसी भी राजनीतिक नेता ने जनता से त्योहार मनाते समय प्रदूषण न फैलाने या पर्यावरण को नष्ट न करने की अपील नहीं की। उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है कि राजनीतिक वर्ग इस मौलिक कर्तव्य को नहीं जानता या इसके प्रति सजग नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभय एस ओका ने बुधवार को एक कार्यक्रम के दौरान पूछा कि क्या दीपावली और क्रिसमस जैसे त्योहारों पर पटाखे फोड़ना धर्म की किसी अनिवार्य परंपरा का हिस्सा है। ऐसा कहने की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि क्योंकि ऐसा करने से बुजुर्गों, अशक्तों और जानवरों पर बहुत बुरा असर पड़ता है। उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा कि पटाखे फोड़कर कोई कैसे आनंद और खुशी प्राप्त कर सकता है, जबकि इससे कमजोरों और बुजुर्गों व पक्षियों और जानवरों को बहुत परेशानी होती है। पूर्व जज ने कहा कि जो लोग इसे खरीद सकते हैं, वे एयर प्यूरीफायर रखकर अपनी सुरक्षा कर सकते हैं, लेकिन यह सुविधा सभी के लिए उपलब्ध नहीं है। यह बात उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की लेक्चर सीरीज में 'स्वच्छ वायु, जलवायु न्याय और हम- एक सतत भविष्य के लिए एक साथ' विषय पर बोलते हुए कही।
पूर्व जस्टिस ओका ने कहा कि 'पटाखे फोड़ना सिर्फ़ दिवाली और हिंदू त्योहारों तक ही सीमित नहीं है। मैंने देखा है कि भारत के कई हिस्सों में ईसाई नव वर्ष के पहले दिन पटाखे फोड़ जाते हैं, साथ ही लगभग सभी धर्मों के लोगों की शादी की बारातों में पटाखे फोड़ते हैं।' पूर्व जज ने आगे कहा, 'क्या कोई यह कह सकता है कि पटाखे फोड़ना किसी भी धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो अनुच्छेद 25 (अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के स्वतंत्र पालन, आचरण और प्रचार) के तहत संरक्षित है?'
उन्होंने कहा, 'दिल्ली के प्रदूषण की बात करें तो, इस हॉल में बैठे हम सभी लोगों के घरों और कार्यालयों में एयर प्यूरीफायर हैं, लेकिन दिल्ली की अधिकांश आबादी इन मशीनों का खर्च नहीं उठा सकती।' सु्प्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ने कहा, कई धर्म और दर्शन मानते हैं कि प्रकृति ईश्वरीय शक्ति है, लेकिन फिर भी लोग इस सिद्धांत को अपनी सुविधानुसार नजरअंदाज कर देते हैं।
पूर्व जस्टिस ने कहा कि सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि किसी भी राजनीतिक नेता ने जनता से त्योहार मनाते समय प्रदूषण न फैलाने या पर्यावरण को नष्ट न करने की अपील नहीं की। उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है कि राजनीतिक वर्ग इस मौलिक कर्तव्य को नहीं जानता या इसके प्रति सजग नहीं है। यही बात हमारे धार्मिक गुरुओं के बारे में भी सच है, बेशक, कुछ सम्मानजनक अपवादों को छोड़कर।'
पूर्व जस्टिस ओका ने अदालतों से यह भी आग्रह किया कि वे यह ध्यान रखें कि पर्यावरण की रक्षा करना उनका भी कर्तव्य है, क्योंकि ऐसा करने के लिए वे आम आदमी से कहीं बेहतर स्थिति में हैं। उन्होंने कहा, 'यदि संविधान निर्माता सभी नागरिकों से अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करने की अपेक्षा करते हैं, तो न्यायाधीशों, जिन्हें आदर्श बनना चाहिए, के लिए पर्यावरण की रक्षा, जीवों की रक्षा, पौधों की रक्षा, हमारे समुद्रों और झीलों की रक्षा जैसे अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करना और भी जरूरी है, क्योंकि यदि न्यायाधीश अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे, तो और कौन करेगा?'
उन्होंने आगे कहा, 'न्यायालय अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों के संरक्षक हैं, जिसमें प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार भी शामिल है। मेरा व्यक्तिगत विचार है कि पर्यावरण की रक्षा करने वाली एकमात्र संस्था न्यायालय या कानून की अदालतें हैं।' उन्होंने कहा कि सभी न्यायालयों को पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के प्रति शून्य-सहिष्णुता का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और पर्यावरण के क्षरण के प्रति अतिरिक्त संवेदनशील होना चाहिए।
पूर्व जस्टिस ओका ने कहा, '...न्यायालय को उन लोगों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो पर्यावरण और पर्यावरण को नियंत्रित करने वाले कानूनों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं, साथ ही उन्होंने पर्यावरण कानूनों के सख्त कार्यान्वयन का आह्वान किया।
SCBA अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति ओका की प्रतिबद्धता की सराहना की। सिंह ने टिप्पणी करते हुए कहा कि लोग कई मायनों में धन्य हैं, लेकिन दिल्ली में रहने और अधिकांश समय इस हवा में सांस लेने के लिए अभिशप्त भी हैं। उन्होंने वायु प्रदूषण को रोकने के लिए सिंगापुर शैली में कड़ी प्रतिक्रिया की मांग की।




