प्राचीन भारत में एक थे कला और विज्ञान
Varanasi News - वाराणसी में आईआईटी बीएचयू के मानवतावादी अध्ययन विभाग ने ‘भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं विरासत’ व्याख्यान शृंखला का उद्घाटन किया। प्रो. भरत गुप्त ने ‘प्राचीन भारतीय रंगमंच’ पर व्याख्यान देते हुए भारतीय...
वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। आईआईटी बीएचयू के मानवतावादी अध्ययन विभाग की तरफ से शुक्रवार को ‘भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं विरासत’ व्याख्यान शृंखला का उद्घाटन हुआ। एनी बेसेंट व्याख्यान संकुल में ‘प्राचीन भारतीय रंगमंच’ विषय पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली के ट्रस्टी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के उपाध्यक्ष पद्मश्री प्रो. भरत गुप्त ने व्याख्यान दिया। प्रो. गुप्त ने भारतीय शास्त्रीय रंगमंच की गहराई और उसके वैश्विक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय और प्राचीन ग्रीक रंगमंच में कई समानताएं हैं। उन्होंने कहा कि कला और विज्ञान का विभाजन आधुनिक युग की देन है, जबकि प्राचीन भारत में दोनों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जाता था।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि नाट्य का उद्देश्य मात्र मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज के नैतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में सुधार लाना था। प्रो. गुप्त ने कहा कि भारतीय समाज में कथा, काव्य या नृत्य-नाट्य ने जनमानस को गहराई से प्रभावित किया है। यह भी बताया कि भारतीय शास्त्रीय ग्रंथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत चिंतन को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे समाज में विवेकशीलता और चिंतनशीलता का विकास हुआ। कार्यक्रम की संयोजिका प्रो. विनीता चंद्रा ने बताया कि इस शृंखला के तहत विभाग द्वारा भारतीय परंपरा, कला और संस्कृति की गहन समझ विकसित करने के लिए निरंतर व्याख्यानों, कार्यशालाओं, सेमिनारों एवं अन्य शैक्षणिक आयोजनों का आयोजन किया जाएगा। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र वाराणसी के निदेशक डॉ. अभिजीत दीक्षित रहे। विभागाध्यक्ष प्रो. प्रशांत कुमार पंडा ने इस शैक्षणिक पहल की सराहना की। इस दौरान डॉ. अनिल ठाकुर, डॉ. काव्या कृष्णा, डॉ. ताराचंद, डॉ. संजय कुमार लेंका शोधछात्र आकाश, अनीश, मनोहर, अनीमेष, अनामिका और आलोक आदि मौजूद रहे।
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